ਸਾਹਿਤ
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लेखक आनंद जैन की कलम से कविता “रोज़गार”…
Poem "Rozgar" from the pen of author Anand Jain...
खाली कंधो पर थोड़ा सा भार चाहिए,
बेरोजगार हूँ साहब रोजगार चाहिए |
जेब में पैसे नहीं है डिग्री लिए फिरता हूँ,
दिन ब दिन अपनी नज़रो में गिरता हूँ।
कामयाबी के घर में खुले किवाड़ चाहिए,
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए|
Talent की कमी नहीं है भारत की सड़को पर,
दुनिया बदल देंगे भरोसा करो इन लड़को पर।
लिखते लिखते मेरी कलम तक घिस गई,
नौकरी कैसे मिले जब नौकरी ही बिक गई।
नौकरी की प्रक्रिया में अब सुधार चाहिए,
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए ||
दिन रात करके मेहनत बहुत करता हूँ,
सुखी रोटी खाकर ही चैन से पेट भरता हूँ।
भ्रष्टाचार से लोग खूब नौकरी पा रहे हैं,
रिश्वत की कमाई खूब मजे से रखा रहे है।
नौकरी पाने के लिए यहा जुगाड़ चाहिए,
बेरोजगार हूँ साहब मुझे रोजगार चाहिए ||